बिहार विधानसभा चुनाव में राजद व कांग्रेस के बीच गठबंधन पर बड़ी खबर, पटना क्यों आ रहे राहुल गांधी? पक रही अलग खिचड़ी

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पटना दौरा उस दिन होने जा रहा है जिस दिन राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की भी बैठक है। दिल्ली में कांग्रेस के खिलाफ राजद नेता तेजस्वी यादव के आम आदमी पार्टी के पक्ष में खड़े हो जाने और आईएनडीआईए के अस्तित्व को खारिज करने वाले बयान के महज हफ्ते भर बाद 18 जनवरी को राहुल गांधी की बिहार यात्रा को संयोग बताया जा सकता है, किंतु राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के भविष्य के लिए इसे एक प्रयोग के तौर पर देख रहे हैं।

राजद पर दबाव बनाने की तैयारी में कांग्रेस

दरअसल, इसी वर्ष नवंबर-दिसंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले सीटों की अत्यधिक हिस्सेदारी के लिए कांग्रेस की तैयारी राजद पर दबाव बनाने की है। पिछले चुनाव में राजद ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं, किंतु 51 सीटों पर हार के लिए बाद में कांग्रेस को ताने भी सुनने पड़ रहे थे।
लालू यादव, तेजस्वी प्रसाद एवं शिवानंद तिवारी समेत कई नेता कोसते रहे थे कि अगर कांग्रेस का प्रदर्शन इतना खराब नहीं होता तो बिहार में तेजस्वी यादव की सरकार होती।

कांग्रेस का हौसला आसमान पर

कांग्रेस का यह अपराध भाव लोकसभा चुनाव में उस वक्त खत्म हो गया, जब बिहार में राजद की तुलना में वह कम सीटों पर लड़कर ज्यादा सीटें जीती और खराब स्ट्राइक रेट के धब्बे को धो दिया। अपने हिस्से में आई नौ सीटों में कांग्रेस ने तीन जीत ली, किंतु 23 सीटों पर लड़कर राजद को मात्र चार सीटें मिलीं। कांग्रेस का हौसला यहीं से आसमान पर है और राजद की बोलती बंद।

लालू को पता है कांग्रेस के उदय का मतलब

कांग्रेस को कोसना भी तभी से बंद हो चुका है। किंतु अंदर ही अंदर चूहे-बिल्ली का खेल जारी है। लालू को पता है कि बिहार में कांग्रेस का उत्थान का मतलब राजद का पतन होगा। इसलिए कांग्रेस को पनपने देने के पक्ष में वह नहीं हैं। ऐसा प्रयास पहले भी किया जा चुका है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में लालू और रामविलास पासवान ने मनमाने तरीके से सीटें बांट ली थी।

जब सोनिया गांधी ने पलट दिया था सियासी गणित

कांग्रेस के लिए मात्र तीन सीटें छोड़कर राजद ने 25 और लोजपा ने 12 सीटें ले ली थीं। यह सोनिया गांधी को मंजूर नहीं हुआ। उन्होंने रास्ता अलग करके सभी 40 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी उतार दिए। नतीजा हुआ कि लालू और पासवान की हैसियत छोटी हो गई और दोनों अपनी-अपनी सीटें भी हार गए।

सोनिया का गुस्सा 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव तक जारी रहा। राजद से अलग होकर उन्होंने सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए, जिससे राजद विधायकों की संख्या 54 से घटकर 22 के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?

राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार का तर्क है कि राजद के दो शीर्ष नेताओं के हालिया बयान को कांग्रेस को हैसियत में लाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। ममता बनर्जी को राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन का नेता बनाने के पक्ष में बयान देकर लालू यादव ने शुरुआत की थी, जिसे तेजस्वी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के पक्ष में खड़े होकर आगे बढ़ाया है।

उन्होंने आईएनडीआईए के अस्तित्व को नकारकर भी कांग्रेस को गहरी चोट पहुंचाई है। अब बारी कांग्रेस के पलटवार की है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राहुल के पटना दौरे को इसी नजरिए से देखा जा रहा है।

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